Right to equality and to save the very nature of the Constitution of India.

Right to equality and to save the very nature of the Constitution of India.
यह पेटीशन क्यों मायने रखती है
नमस्कार,
मैं प्रज्ञा और मेरी साथी रवीना इस याचिका की शुरूआत कर रहे हैं। हम भोपाल शहर की एक स्थानीय मीडिया संस्था में पत्रकारिता कर रहे हैं।
9 नवंबर 2019 को 'नागरिकता संसोधन विधेयक, 2019' लोकसभा में पेश किया गया, इसे 293 वोट समर्थन में मिले तो वहीं 82 सांसदों ने इसका विरोध किया है। हम भारतीय संविधान में विदित 'समानता के अधिकार' के लिए चिंतित हैं क्योंकि यह विधेयक व्यक्ति विशेष के धर्म के आधार पर नागरिकता देने का समर्थन करता है।
बीबीसी के अनुसार, "नागरिकता संशोधन विधेयक में बांग्लादेश, अफ़गानिस्तान और पाकिस्तान के छह अल्पसंख्यक समुदायों (हिंदू, बौद्ध, जैन, पारसी, ईसाई और सिख) से ताल्लुक़ रखने वाले लोगों को भारतीय नागरिकता देने का प्रस्ताव है।
मौजूदा क़ानून के मुताबिक़ किसी भी व्यक्ति को भारतीय नागरिकता लेने के लिए कम से कम 11 साल भारत में रहना अनिवार्य है। इस विधेयक में पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यकों के लिए यह समयावधि 11 से घटाकर छह साल कर दी गई है।
इसके लिए नागरिकता अधिनियम, 1955 में कुछ संशोधन किए जाएंगे ताकि लोगों को नागरिकता देने के लिए उनकी क़ानूनी मदद की जा सके। मौजूदा क़ानून के तहत भारत में अवैध तरीक़े से दाख़िल होने वाले लोगों को नागरिकता नहीं मिल सकती है और उन्हें वापस उनके देश भेजने या हिरासत में रखने के प्रावधान है।"
नागरिकता संसोधन विधेयक, धार्मिक आधार पर तय करेगा कि कौन भारत देश का नागरिक है, कौन नहीं, जो कि संवैधानिक रूप से पूर्णतः गलत है। हमारा संविधान सभी को बराबरी का अधिकार देता है, फिर हम किसी भी व्यक्ति को धर्म के आधार पर नागरिकता से बाहर कैसे कर सकते हैं? यह संविधान की अवहेलना है।
देश के पूर्वोत्तर राज्यों में इस बिल के विरोध में लगातार प्रदर्शन हो रहे हैं। देश में कई स्थानों पर इसके साथ ही एनआरसी का भी विरोध हो रहा है।
सरकार इस विधेयक के माध्यम से हमारे धर्मनिरपेक्ष देश की आत्मा को मारने का काम कर रही है, कृपया इस बिल के विरोध में हमारा साथ दें और सरकार को बताएं कि वो इस तरह संविधान की हत्या नहीं कर सकती।