न्याय
न्याय
डरो ! थोड़ा सत्ता के अहंकारियों
ये झाँसी वाली का देश है ,
यहाँं सीता को दुर्गा बनने में ;
देर नहीं लगेगी ।
बोलो , बोलो , अब कब तक सोओगे ? कब तक सत्ता के मद में चूर दुर्योधनों को सोने दोगे ?? कब जागोगे ? कब जगाओगे ?? क्या द्रौपदी बन सदा घसीटाती ही रहना चाहती हो ? अरे द्रौपदी ने तो फिर भी किसी को क्षमा नहीं किया और युध्द की विजय के लहु से केश धोकर ही उन्हें बाँधा था ! तुम तो युध्द तक नहीं कर रही, हुंकार भरना तो दूर, बोल तक नहीं रही ! क्या यही सिखाया है माँ दुर्गा ने,, महिषासुरों का वध करना दूर, वध की माँग से हाहाकार न मचा सक रही हो?? ये कौन सी मिट्टी के डर पोक सन्सकार है तुम्हारे ? कब जागोगी ? कब बोलोगे ?जब दुर्गा के देश की नारी का वजूद राख कर दिया जाएगा ?वैसे राख तो किया जा चुका है। आँखें बन्द कर जीने वाले अन्धोँ, अब कब आँख खोलोगे?? जब सारी लडकियोँ को 'सबक सिखा दिया जाएगा' तब?? जब सब मर जाएँगी तब ? कुछ तो बोलो !! जो सत्ता के नशे में मीठी नींद का आनन्द ले रहे हैं ,उनका आनंद भंग करने का मन नहीं कर रहा क्या?? बहुत ही बड़ा है तुम्हारा दिल तो !! आदिशक्ति दुर्गा से भी बड़ा हृदय -क्या संस्कार है वाह ! महिषासुरों और दुष्शासनोँ को क्षमा कर सकती हो तुम वाह ! अरे ओ! मर्यादापुरुष राम को पूजने वालों ,,अब कब लड़ोगे , कब बोलोगे?? कुछ तो बोलो या सब मर ही चुके हो ??
- क्या हुआ .. क्या ज्यादा कड़वा लगा ?
- क्या करें !!सच इससे भी ज्यादा जहरीला है !
- कड़वा लगा हो तो इस हुँकार को आगे बढ़ाना और जो न लगा हो तो:
- चादर तान के सो जाना ।
फिर न कहना कोई कुछ करता क्यों नहीं ?