ERCP को National Project बनाओ

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आखिर कब बुझेगी राजस्थान के 13 जिलों की प्यास! देखिए ये खास रिपोर्ट

गंगापुर सिटी : राजस्थान के 13 जिलों की प्यास कब बुझेगी? केंद्रीय बजट से पहले ये यक्ष प्रश्न गूंज रहा दिल्ली से लेकर जयपुर तक के सियासी गलियारों में.राजस्थान को निर्मला सीतारमण के बजट से सर्वाधिक उम्मीदें हैं उस नहर परियोजना को लेकर की मंजूरी की जिसके जरिए पूर्वी राजस्थान और हाड़ौती के लोगों और वहां के खेतों की प्यास बुझाई जा सके. मोदी सरकार और गहलोत सरकार के बीच पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना का मसला लंबे समय से अटका है. सीएम गहलोत इसे लेकर पीएम मोदी को पत्र लिख चुके है.वादाखिलाफी के आरोप भी लग रहे.पूरे मसले पर सियासत उफान पर है. 

 

धौलपुर से लेकर झालावाड़ और दौसा तक फैले 13 जिलों को अक्सर अकाल और सूखे का सामना करना पड़ता है.लोगों के पेयजल का अभाव तो है ही साथ ही पानी की कमी ने भरतपुर,दौसा ,धौलपुर,करौली और सवाई माधोपुर जैसे जिलों की औद्योगिक समृद्धि को भी धूमिल कर रखा. मजबूरन यहां के लोग अन्य प्रदेशों में रोजगार के लिए पलायन कर रहे.जिस तरह आईएनजीपी ने श्रीगंगानगर से लेकर बीकानेर तक लोगों के जीवन को बदला वैसी ही उम्मीद पूर्वी राजस्थान और हाड़ौती के जिले कर रहे है,पूर्वी राजस्थान के जिले इसलिए खास क्योंकि यहां नदियां बरसाती है और अक्सर बेरूखी हो जाती है.

 

13 ज़िलों में झालावाड़, बारां, कोटा, बूंदी, सवाई माधोपुर, अजमेर, टोंक, जयपुर, करौली, अलवर, भरतपुर, दौसा और धौलपुर शामिल हैं. राजस्थान की जनता की भावी केंद्रीय बजट में पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना को मूर्तरूप देने की सबसे प्रबल मांग है. पूर्ववर्ती बीजेपी सरकार के शासन में शुरू हुई ये परियोजना दरअसल इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि पूर्वी राजस्थान के 13 जिलों में पीने और सिंचाई के लिए पानी सुनिश्चित किया जा सकेगा. साथ ही इससे प्रदेश में स्थायी जल स्रोतों में वृद्धि होने के साथ ही उद्योगों को बढ़त मिलने, निवेश और राजस्व बढ़ने की भी उम्मीद है.वहीं दिल्ली- मुबंई इंडस्ट्रियल कोरिडोर प्रोजेक्ट के तौर यहां इससे औद्योगिक विकास की बड़ी संभावना पैदा होगी. राजस्थान की गहलोत सरकार इस बारे में मंत्रिमंडल में

प्रस्ताव ला चुकी है.

 

सीएम गहलोत PM मोदी को लिख चुके पत्र: 

- गहलोत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर राज्य की महत्वाकांक्षी पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना (ईआरसीपी) को राष्ट्रीय परियोजना घोषित करने की मांग की.

 - गहलोत ने पत्र में लिखा है कि लगभग 37 हजार 247 करोड़ रुपए की लागत वाली इस परियोजना से राज्य के 13 जिलों में पेयजल और 2.8 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई के लिए पानी की उपलब्धता सुनिश्चित होगी.

 

 

 

- ईआरसीपी की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) नवंबर 2017 में आवश्यक अनुमोदन के लिए केंद्रीय जल आयोग को भेजी जा चुकी है.

 

 

इस परियोजना को राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा मिलने का मुख्य लाभ यह होगा कि परियोजना को पूर्ण करने हेतु 90 प्रतिशत राशि केंद्र सरकार द्वारा उपलब्ध कराई जा सकेगी.ERCP की अनुमानित लागत लगभग 40,000 करोड़ रुपए है.ERCP का उद्देश्य दक्षिणी राजस्थान में बहने वाली चंबल नदी और उसकी सहायक नदियों , बनास ,कुन्नू, पार्वती, कालीसिंध में वर्षा ऋतु के दौरान उपलब्ध अधिशेष जल का उपयोग राज्य के उन दक्षिण-पूर्वी ज़िलों में करना है जहां पीने के पानी और सिंचाई हेतु जल का अभाव है.इस प्रोजेक्ट को साल 2051 तक पूरा किये जाने की योजना है जिसमें दक्षिणी एवं दक्षिण-पूर्वी राजस्थान में मानव तथा पशुधन हेतु पीने के पानी तथा औद्योगिक गतिविधियों हेतु पानी की आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके.

 

 

ERCP से राजस्थान को लाभ:

- पूर्वी और दक्षिण राजस्थान के भू-क्षेत्रों में सिंचाई की सुविधा उपलब्ध होगी.

- ग्रामीण इलाकों में भूजल तालिका (Ground Water Table) में सुधार होगा.

-यह लोगों की सामाजिक-आर्थिक स्थितियों को सकारात्मक रूप से परिवर्तित करेगा.

-Delhi Mumbai Industrial Corridor- DMIC के लिए स्थायी जल स्रोतों को बढ़ावा मिलेगा जिससे इस क्षेत्र में उद्योगों का विकास होगा.

-परिणामस्वरूप राज्य में निवेश और राजस्व में वृद्धि होगी.

 

 

राज्य की कांग्रेस सरकार पुरजोर शब्दों में ERCP के लिए केंद्र सरकार से मांग कर चुकी है.यहां की कांग्रेस उस घटनाक्रम को बार बार याद दिलाती है जब लोकसभा चुनाव के समय प्रचार के दौरान पीएम मोदी ने ERCP को लेकर बात कही थी. बीजेपी सांसद डॉक्टर किरोड़ी लाल मीणा भी इस बार में आवाज बुलंद कर चुके है.राजस्थान प्रदेशवासियों को उम्मीद इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि देश के जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत का ताल्लुक राजस्थान से है

.राजनीतिक रूप से देखे तो राजस्थान ने पूरे 25 सांसद बीजेपी के झोली में डाले है लिहाजा राजस्थान के लोगों को उम्मीद करने का हक है. लोक सभा के अध्यक्ष ओम बिरला है जो कोटा (हाड़ौती)से है लेकिन चम्बल नदी का पानी वर्षा ऋतु में व्यर्थ बह जाता है, जिसका उपयोग कर लिया जाए तो पूर्वी राजस्थान के 13 जिलों की तस्वीर बदल सकती है चम्बल का पानी आगे चलकर बंगाल की खाड़ी में गिर जाता है (1 )चम्बल :- चंबल नदी का नाम प्राचीन काल में चर्मण्यवती के नाम से जाना जाता था चंबल का उद्भव मध्यप्रदेश में गांव के निकट मानपुर के समीप जानापाव पहाड़ी से हुआ है जो विंध्य पर्वत किस श्रेणी में आता है यह राजस्थान में 84 गढ़ किले के निकट प्रवेश कर कोटा और बूंदी जिलों की सीमा बनाती हुई तत्पश्चात सवाई माधोपुर कोटा की सीमा बनाते हुए राजस्थान मध्य प्रदेश की सीमा के साथ-साथ प्रभावित होती हुई अंत में यमुना नदी में उत्तर प्रदेश के ईटावानगर के निकट मिल जाती है राजस्थान में चंबल नदी 135 किलोमीटर मार्ग तय करती है जब इसकी कुल लंबाई 965 किमी है राजस्थान में प्रवेश से पूर्व नदी का तल लगभग 300 मीटर चौड़ा है किंतु इसके पश्चात इसकी घाटी संकलन हो जाती है चोरासी गढ से 5 किलोमीटर दूर चूलिया जलप्रपात है इसके पश्चात कोटा नदी का एक संकीर्ण घाटी (गार्ज) से प्रभावित होती है सवाई माधोपुर धौलपुर क्षेत्र में चंबल नदी के समीपवर्ती क्षेत्रों में अत्यधिक कटाव के कारण बीहड़ बन गए हैं चंबल नदी पर निर्मित गांधी सागर बांध जवाहर सागर बांध राणा प्रताप सागर कोटा बैराज सिंचाई एवं जल विद्युत के प्रधान स्त्रोत हैं काली सिन्ध नदी , पार्वती नदी , वापनी नदी , मेज नदी, गम्भीर नदी (मध्यप्रदेश में जावद की पहाड़ियों से निकलती है, चित्तौड़ जिले में बहती हुई चित्तौड़ नगर में से 2 किलोमीटर उत्तर मैं बेड़च से मिल जाती है

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