जल का कोई विकल्प नहीं है

जल का कोई विकल्प नहीं है
यह पेटीशन क्यों मायने रखती है
नदियां सिर्फ जल की धारा नहीं है इसके किनारे सभ्यता संस्कृति के उद्गम हैं वह हमें जीवन देती है चाहे इसके जल से फसलें लहलहाती हो या हमारी प्यास तृप्त होती हो परंतु हम सिर्फ उसे अपना मेलापन देते हैं। हमें समझना होगा की नदियां हमारी जीवन रेखा है इसकी अविरलता में ही निर्मलता है हमें नदियों को पूजने के तौर-तरीकों में बदलाव करना होगा। इसके किनारों को वृक्ष लगाकर पूजना होगा संवारना होगा। हमें विचारना चाहिए की राजीव गांधी सरकार से नरेंद्र मोदी सरकार तक गंगा की सफाई के लिए कितना धन खर्च हुआ है, हो रहा है और अभी भी नमामि गंगे परियोजना जारी है। जो नदियों की सफाई के लिए एक एकीकृत योजना है जिसमें गंगा के साथ ही सहायक नदियां व उप -सहायक नदियां भी सम्मिलित हैं।
नदियों के प्रति हमारे पूर्वजों के क्या भाव थे इसको समझने के लिए हम अमृतलाल वेगड़ की नर्मदा यात्रा या सौंदर्य की नदी नर्मदा को पढ़ सकते हैं। चाहे गंगा हो या नर्मदा हो या अन्य नदियां इनके किनारे भारत की सांस्कृतिक समन्वय का केंद्र है। चाहे संगीतकार हो गीतकार हो चित्रकार हो गायक हो कवि / लेखक हो जब वह किसी से प्रेम करता है तभी अपना मौलिक नवसृजन दे पाता है इसी तरह हमें जल से प्रेम करना होगा। वर्षा की बूंद- बूंद हमें संचित करना होगा। कृषि सिंचाई के तौर-तरीकों में बदलाव लाना ही होगा। अन्यथा हम कुछ वर्षों के पश्चात पीने के पानी के लिए तरस जाएंगे। हमारे विकास में अनियंत्रित शहरीकरण और बढ़ती जनसंख्या एक बहुत बड़ी समस्या है। हमारी परियोजना ऐसी हो जिसमें हम पेड़ों को बचा सके और इसका अन्य विकल्प तलाशें। इतनी बड़ी मात्रा में युवा भारत की युवा तरुणाई हैं क्या हम नए-नए विचार जो धरातल पर क्रियान्वित किए जा सके उनको इस धरा पर नहीं उतार सकते क्या। औद्योगिकीकरण और हरित क्रांति में अत्यधिक जल का उपयोग किया गया परंतु अब हमें जल संकट की चुनौती को स्वीकारना होगा क्योंकि बढ़ती आबादी के दैनिक जल उपयोग व औद्योगिकीकरण द्वारा प्रदूषित जल एक बहुत बड़ी समस्या है। बढ़ती आबादी को रहने के लिए घर तो चाहिए ना , जमीन पर ही घर बना सकते हैं फिलहाल तो। इसके कारण खेती योग्य भूमि घट रही है भारत के पास विश्व की 2.5% भूमि है और आबादी 17% है। आबादी नियंत्रित रहेगी तो इस भूमि को जल संचयन के लिए उपयोग कर सकते हैं ।इस आबादी का सबसे अधिक भार भारत की प्रमुख नदी गंगा पर अत्यधिक है। गंगाजल से प्रत्यक्ष तौर पर भारत की आधी आबादी को भोजन प्राप्त होता है और आजीविका भी चलती है।
हम समय के साथ बहुत कम बदले हैं हमें बदलना होगा ।किसी अंधविश्वास को हमें संस्कार नहीं मानना है विशेष रूप से उसको जिससे जल प्रदूषित हो या उस में रहने वाले जीव जंतु को नुकसान पहुंचे। हमें उस विराट जल प्रदूषित संकट को भी देखना होगा जो वर्षों कि हमारी रूढ़िवादिता से उपजा है ।अंधविश्वासों में हम अपने ही साथ छल कर रहे हैं अपने को ही नष्ट करने पर आतुले हैं।
काट दिए जंगल, तो बादल न बरसेंगे न करेंगे पर्यावरण संरक्षण ,तो पानी को भी तरसेंगे। इतना पतन हमारा होगा, यह अनुमान न था पहले तो ऐसा अपना हिंदुस्तान न था।( बटुक चतुर्वेदी)
क्या हम भविष्य की अर्थव्यवस्था को पर्यावरण के अस्तित्व के साथ गति नहीं दे सकते। हमारे आविष्कार ऐसे हो जिसमें पर्यावरण का सह-अस्तित्व हो समावेशन हो। अगर ऐसा नहीं हुआ तो हम कितना ही गहरा खोदते जाएंगे इस धरा को फिर भी जल नहीं निकलेगा। हल निकलेगा हल निकलेगा अगर गहरा खोदोगे जल निकलेगा शिवकुमार अर्चन की यह पंक्ति हमारे समय में झूठी हो सकती है। हमें गंगा को बचाना होगा नर्मदा को बचाना होगा इसी तरह समस्त नदियों को बचाना होगा। हमें जल से प्यार करना होगा और जब हम उससे प्यार करेंगे तो हम उसको सुरक्षित और संरक्षित भी करेंगे। तो आइए इस अभियान में इस कर्तव्य को शिरोधार्य कीजिए कहीं ऐसा ना हो कि सच में तीसरा विश्वयुद्ध जल के लिए तो होगा ही परंतु उसके पहले भारत के राज्यों में ही जलीय विवाद अपनी पराकाष्ठा को छुए। हमें जल संरक्षण के लिए धरा के अंदर निरंतर प्रवाहमान के लिए अत्यधिक वृक्ष लगाने होंगे पहाड़ों का मानवीय कटाव/ छेड़छाड़ रोकना होगा नदी के प्राकृतिक बहाव से छेड़छाड़ छोड़ना होगी अगर ऐसा करेंगे तो बाढ़ की समस्या पैदा होगी। बेशकीमती पानी हमें बिना मोल के मिलता है न इसलिए हम इसकी कीमत नहीं करते जब यह पीने को नहीं मिलेगा तब इसका मोल पता चलेगा- फिर हम कहेंगे पानी अब कहे लाख टका मेरा मोल। कभी हमने सोचा है की गंगा नहीं रहेगी तो इस भारत का क्या होगा। इसको हम इस तरह समझ सकते हैं कि बरसात के बाद हमारे आसपास के गांवों में जो छोटे-छोटे तलाब भर जाते हैं और जो बरसात के दो-तीन महीने बाद सूख जाते हैं तब जल की समस्या कितनी आती है। जब यह जल से भरे रहते हैं तब आसपास पशु-पक्षी व जलीय जीवों को आश्रय मिलता है या विविधता देखने को मिलती है । हमें यहां विविधता बनी रहे इस कर्तव्य को निभाना होगा ।पशु पक्षियों का भी इस धरा पर उतना ही अधिकार है जितना हमारा या कहें उनका हम से अधिक । गंगा नदी हमारी धरोहर है मां है इसे जीवित मां की तरह ही सजों के रखना है यह हमारी जीवन रेखा है प्राण -दायिनी ममतामयी मां है ।गंगा रहेगी तो फसलें पैदा होगी और जब गंगा और फसलें दोनों होगी तब हमारा स्वस्थ शरीर रहेगा। राजेंद्र शर्मा कहते हैं- जल के लिए तो सोचो ,कल के लिए सोचो है प्रश्न कठिन फिर भी हल के लिए सोचो ।
डिसीजन-मेकर (फैसला लेने वाले)
- भारत के नागरिक और सरकार