भारत के विकास मे बाधक मुद्धो कि समिक्षा
0 व्यक्ति ने साइन किए। 100 हस्ताक्षर जुटाएं!
मेरा नाम आदेश है ,आज कल समाज में चल रहे परिवर्तन से मन में जो सवाल उठ रहे है और उसके परिमार्जन सम्बन्धी आपके सामने कुछ विचार रखना चाहता हूँ I
१. संविधान लिखते वक्त समाज की देश के प्रति निष्ठां मुख्य होती हैI
अब यह बदलकर समाज की धर्म और जाती के प्रति निष्ठां मुख्य हो गयी है. तो क्या इससे संविधान में निहित भारत देश के स्वाभिमान की रक्षा हो पायेगी?
२. हम सभी भारतीय है और सारे भारतीय मेरे भाई- बहन है. यह सब संविधान में लिखने के लिए ही बनाया गया क्या?
३. मेरे देश में सभी हिन्दू, मुस्लिम और अन्य जाती के लोग ही रहेंगे तो भारतीय लोग कहाँ रहेंगे?
४. धर्मो में रहकर हम देश को और कितनी बार बांटते देखना चाहेंगे?
५. जापान जैसे छोटे देश में अणुबॉम्ब विस्फोट के बावजूद , सिर्फ राष्ट्र प्रेम के कारन इतनी तरक्की की , की सुजलाम सुफलाम् जैसा देश भी टेक्नोलॉजी के लिए निर्भर है I
६. बड़े बड़े विकसित देशो में कभी जाती-धर्म की राजनीति नहीं देखी, देखि तो राष्ट्र के प्रति अपना कर्तव्य, निष्ठां I
७. अमेरिका में फ़ौजिओं के देखते ही जनता तालियों से स्वागत करती है I हमारे देश में पथ्थरो से स्वागत करना कब बंद होगा?
८. हम सभी हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई होने से पूर्व मानव है तो हमारे देश का एक धर्म "मानव धर्म " क्यों नहीं हो सकता? जो अनेकता में एकता को दर्शाये.
९. क्या हमारे शांत रहने से या उचित कदम न लेने से हम अपने स्वतंत्र सैनिको के बलिदान का अपमान तो नहीं कर रहे है?
१०. लगभग सभी राजनैतिक पार्टिया # अपने वोटर्स कम ना हो
# गटभंधन न टूटे,
इस डर से कोई कड़े या अहम् फैसले नहीं ले पाती है I ऐसे में देश का विकास सिर्फ कागजो और भाषणों में ही मिलता है I
११. आम नागरिको के लिए अनेको नियम , कानून और टैक्स के प्रावधान है , परन्तु देश के अनेको पूंजीपति और मंत्रियो के लिए सभी कानून लगभग ना के बराबर क्यों?
१२. देश से पहले पार्टी की सोच रखने वाले मंत्रियो को शासन या अनुशासन कौन बताएगा?
१३. आर्मी अनुशाषित होनी चाहिए क्योंकि वो देश की सुरक्षा करते है . परन्तु देश की अंदरूनी सुरक्षा ऐसे अ अनुशाषित मंत्रियों से कैसे होगी, जो सिर्फ धर्म और जाती का सहारा लेके देश में विषमता फैलाती है ?
१४. देश में कोई भी निम्न भाषा का प्रयोग किसी भी बड़े पद के व्यक्ति के लिए करना ये कैसा देश का लोकतंत्र है?
१५. आज देश के सामने कितने ही ज्वलंत मद्दे है जैसे की .....जनसंख्या, पानी , बिजली, ज़मीन , महंगाई , करप्शन, प्रदुषण........... आदि पर हमारे नेताओ का ध्यान जा कर भी उसे अनदेखा क्यों करते है?
और कोई करना भी चाहता है तो बाकि इसे "लोकतंत्र खतरे में है" क्यों कहते है ?
१६. देश स्वतंत्र होने के इतने सालो बाद भी देश विरोधी ताकतों को कब तक पालते / झेलते रहेगा?
इसलिए कुछ विचार परिमार्जन रूप में आपके समक्ष्य रखना चाहता हूँ.
१ "मेरा देश ही मेरा धर्म है"
"मेरे देश की प्रगति ही मेरा कर्म है "
यह सोच और कर्म वाले व्यक्ति (लगभग ५०० ) जो पुरे देश भर से हो जिनमे मुख्यातहा आर्मी, साइंटिस्ट , समाजसेवक, शिक्षक, खिलाडी, आईएएस अधिकारी, रक्षा विशेषज्ञ, सेवा निवृत नागरिक हो , का एक पैनल देश के अलग अलग राज्यों में चल रही सरकारों के कार्य कि समीक्ष्य करेगी और पांच साल में कौन कौन से प्रगति पूर्ण कार्य करने है यह बताएगी और असमर्थ होने पर अगले दस सालो तक उस पार्टी और सम्बंधित नेताओ को इलेक्शन में न लड़ने के काबिल ठहराएगी और यह सक्ति से होगा I
हमारे मंत्रियो के ऊपर कोई उचित दबाव न होने के कारन वे प्रगति के कार्य आराम से चालू करते है अब नहीं लड़ पाएंगे इस डर से जमीनीस्तर पर उतरकर देश हित में कार्य करेंगे I
२. . सभी मंत्रियों की एलिजिबिलिटी ५०० लोगो की टीम तय करेगी I
# जैसे की अब तक किये गए सामाजिक कार्य
# गोद लिए गए गांव की प्रगति
# किसी आतंकवादी संघटन से सम्बन्ध
# भाषण में भाषा का स्तर
# सरकारी संपत्ति के इस्तेमाल का स्तर
# इनकम टैक्स द्वारा उसके व परिवार का ब्यौरा सार्वजनिक हो और ५ साल बाद थोड़ी भी धांदली मिलने पर मिले हुए पुरे इनकम का 80% राजकीय खाता में जमा हो I
# कितने और कौनसे आरोप / संगीन आरोप है........................................ आदि . हमारे मंत्रियो के ऊपर कोई उचित दबाव न होने के कारन हम अनेको मुद्दों में हास्य के पत्र बन चुके है I
आज ऐसे कड़े नियमो की जरुरत इसलिए है की कोई धर्म की राजनीती करता है या कोई जानभूझकर धर्म जाती को राजनीति बनता है I कोई गठबंधन से प्रगति नहीं कर पता तो कभी ज्यादा सीटों वाली पार्टी विपक्ष में और कम पक्ष वाली पार्टी सरकार में ऐसे में देश की प्रगति कहा संभव.है ?
आज देश की जो बीमारी है ऐसे हालत में पेरासिटामोल जैसे छोटी दवाई (भाषणों) से काम नहीं होगा तो कोई हार्ड एंटीबायॉटिक्स (सख्त नियम ) देनी होगी Iनहीं तो हालत बाद से बत्तर होने में वक्त नहीं लगेगा फिर कीमोथेरपी या रेडिएशन थेरेपी से भी काम नहीं हो पायेगा I
हमारे महापुरोषोने देश के स्वाभिमान की रक्षा की I आज निजी इच्या और स्वार्थ छोड़कर देश के हीत में कार्य करने के लिए एकजुट होना पड़ेगा ताकि हमारा और हमारे देश का विकास हो और जाती धर्म से उठकर सिर्क मानव धर्म का प्रचारक बनकर नयी मिसाल स्थापित करे I
धर्म और जाती से पहले देश है और देश के प्रगति के लिए आपके सामने कुछ मुख्य बातो को संक्षेप में रखा I
आशा है "वसुध्यैव कुटुम्बकम " को स्थापित करने के लिए हम सभी अग्रेसर रहे I
आपके अभिप्राय के इंतज़ार में I
भवदीय
आदेश
साइन की प्रक्रिया पूरी करें
0 व्यक्ति ने साइन किए। 100 हस्ताक्षर जुटाएं!